Saturday 8 September 2012

नई शर्ट

आज मैने नई शर्ट पहनी, आइनें में खुद को निहारा, चल पड़ा अपने काम पर, रास्तें लगा कि इसे उतार कर फेंक दूं, हिम्मत नहीं कर पाया, शायद लोगों की प्रतिकिरया के डर से/ तय नहीं कर पाया एेसा क्यों नहीं कर पाया/ पर मुझे झकझोर जरूर गया था यह वाकया/ सामने एक छोटा किशोर था/ जिसके बदन पर चिथड़े थे या कपड़े/ यह कहना मुशकिल है/ हम दोनों में एक समानता भी यही थी/ दोनों ने कपड़े अपने लिए नहीं पहने थे/ उसे लोगों की प्रतिकिरया की चिंता थी/ और मुझे भी लोगों की ही चिंता थी/ मैंने अनिच्छा से नई शर्ट पहनी और/ उसने अपनी इच्छा से पहनी थी
मैं इस कदर गम जदा रहा, वो मसीहा हमसे जुदा हो रहा, जग को जीत कर वो रहा, अश्कों का पानी सूखता रहा, उसकी अदा का कायल में रहा, महफिल में मेरी तू नहीं रहा, आवाज का करिश्मा ही रहा
-राजेश रावत भोपाल

हौसलों की धार हमने देखी, नन्हें हाथों में पतवार देखी, जिगर की ललकार देखी, लकीरों की बदलते धार देखी राजेश रावत , भोपाल


Thursday 8 December 2011

२० जनवरी से शुरू होगा जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल

नई दिल्ली Ð जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल 2012 जयपुर के दिग्गी पैलेस में 20 जनवरी से शुरू हो रहा है। 24 जनवरी तक चलने वाले इस उत्कृष्ट साहित्य महोत्सव में राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय लेखकों की पुस्तकें प्रदर्शित की जाएंगी और नए लेखन के अतिरिक्त अरब जगत की जन जागृति, गांधी-टॉल्सटाय- टैगोर तथा अन्ना जैसे विषयों पर चर्चा होगी। शेष त्नपेज ९ पर
साहित्य राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय लेखन , वाद- संवाद , पठन और संगीत के इस महोत्सव में विश्व के 200 से अधिक हस्ताक्षर भाग लेंगे। के इस वार्षिक उत्सव का पार्टनर दैनिक भास्कर समूह है।

पांचवें जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल 2012 में अरविंद कृष्ण मेहरोत्रा, अमिष त्रिपाठी, बेन ओकरी, डेविड हरे, डेविड रेमनिक, दीपक चोपड़ा , फातिमा भुट्टो , गुलजार , हरि कुंजरु , हेलेन फिल्डिंग ,जमैका किन कैड, जेम्स शैपिरो , जैसन बर्क , जावेद अख्तर , लक्ष्मी शर्मा, महेश दातानी, माइकल ऑन्डाची, मो. हनीफ,पवन वर्मा , पीयूष दैया , प्रसून जोशी, पुरुषोत्तम अग्रवाल, राहुल भट्टाचार्य , रवि थापा, रंजीत होसकोते, श्याम जहांगिड़ , सिमॉन सेबाग मोंटेफोर , तहमीमा अनम, थां मिन्त यू , टॉम स्टोपार्ड और जो हेलर जैसी देश-विदेश की प्रसिद्ध हस्तियां भाग लेंगी।
जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल का फोकस भक्ति और सूफी परंपरा, अरब जगत में जन विद्रोह , गांधी-आंबेडकर और अन्ना, सेंसरशिप, विश्व के तनाव वाले हिस्सों की रचना, थियेटर और अन्य अहम मसलों पर रहेगा। फेस्टिवल की सह-निदेशक नमिता गोखले ने कहा कि जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल वास्तव में भारतीय-अंतर्राष्ट्रीय लेखन का कुंभ मेला है। 2012 के फेस्टिवल से साहित्य जगत को नई ऊर्जा हासिल होगी।
फेस्टिवल के दूसरे सह निदेशक विलियम डैलरैम्पस ने बताया कि इस उत्सव में हम टॉलस्टाय, टैगोर और गांधी के आकर्षक संबंधों की भी विवेचना करेंगे। फेस्टिवल में भाग लेने के लिए पर रजिस्ट्रेशन कराया जा सकता है।

भोपाल में होता है हर दिन जल युद्ध

-राजेश रावत भोपाल
8 दिसंबर 2011
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दुनिया भर में बार बार भविष्यवाणी की जा रही है कि जल युद्ध होगा। जल यानि पानी बचाने के लिए आंदोलन चलाया जाना चाहिए। सरकारें भी पानी बचाने का नारा देकर थक चुकी हैं। लेकिन न तो वे पानी की बचत के लिए आम आदमी को प्रोत्साहित कर पाई है और न ही खुद एेसे प्रावधान कर पाई कि पानी की बचत की दिशा में सार्थक पहल माना जाए। जैसे सौ साल पहले पानी बहता था वैसे ही अविरल बह रहा है। जैसे हम पानी की बहुलता के समय उसकी बर्बादी करते थे आज भी वैसे ही कर रहे हैं।

पानी की कमी का अहसास भोपाल में आकर हुआ। मध्यप्रदेश की राजधानी के विषय में दुनिया भर में किवदंती प्रचलित है कि तालों में ताल भोपाल ताल बाकी सब तलैया। यह भी सही है कि जिस तरह राजस्थान के उदयपुर शहर को झीलों की नगरी माना जाता है। उसी तरह भोपाल को तालाबों का शहर माना जाता है।

फिर भी यहां के लोगों को पानी की कमी का दंश झेलना पड़ता है। यह भी रौचक तथ्य है। इसका सीझा और सपाट उत्तर यह है कि तालाबों की बहुलता के चलते यहां के लोगों ने पानी की महत्ता को उस तरह से नहीं समझा जिस तरह से राजस्थान के लोगों ने समझा और सहेजने के उपाय भी इजाद किए।

एेसा नहीं है कि यहां के लोगों ने योजना नहीं बनाई। जनसंख्या के बढ़ते दबाव को महसूस कर समय -समय पर मंथन तो किया। लेकिन अमली जामा पहनाने में पिछड गए। क्योंकि उस दौर में पानी की कमी नहीं थी और न ही हाहाकार मच रहा था कि उस पर गंभीरता से सोचने को मजबूर हों। भोपाल की जीवन रेखा बड़ा तालाब है। इससे लगा छोटा तालाब भी है। बड़े तालाब के निमार्ण का काल 11 वी सदी माना जाता है।

इस तालाब से करीब तीस मिलियन गैलन पानी (करीब 11.36 करोड लीटर)रोज भोपाल को देता है। यह तालाब यहां के चालीस प्रतिशत लोगों की प्यास बुझाता है। इस झील का क्षेत्रफल 31 वर्ग किलोमीटर है। 361 वर्ग मिमी इलाके में पानी एकत्र किया जाता है। इससे भोपाल के 87 गांव और सीहोर के कुछ गांवों के किसान सिंचाई भी करते हैं।

अब सवाल यह है कि जिस शहर की 18 लाख की आबादी होने जा रहा है। वहां पानी की किल्लत तो होना ही लाजिमी है। पर यहां के प्रशासकों का आकंलन सटीक था तो उसके निराकरण के प्रयास में वे विफल क्यों हुए इन कारणों को खोजा जाना चाहिए।

भोपाल का विस्तार लगातार होता जा रहा है। इस विस्तार के हिसाब से क्या पानी की खपत का आकंलन करके योजना बनाई जा रही है और बन रही है तो उसके किरय़ान्वयन के लिए जो प्रभावी तंत्र का गठन होना चाहिए वह हुआ है और उसकी निगरानी का क्या प्रावधान है।

इसे सबके सामने रखना होगा। इसमें जितना सरकारी तंत्र का रोल है उतना ही आम जन की भागीदारी होने से इस समस्या को सुलझाया जा सकेगा। न तो कभी अकेले सरकारों ने कोई काम किया है और न ही कर पाएगी। क्योंकि आम जन की भागीदारी के बगैर इस समस्या का हल नहीं निकाला जा सकता है।

Sunday 20 November 2011

जितने हमले होंगे उतना आंदोलन बढेगा

राष्ट्र पिता महात्मा गांधी ट्रेन से उतारे जाने के बाद अगर हिंसा का शिकार नहीं होते तो शायद भारत आजाद नहीं होता और न ही लोकतंत्र की नीव पड़ती। इसलिए टीम अन्ना जितना हिंसा के निशाने पर रहेगी। लोगों के भीतर पनप रहा असंतोष उतना ही मुखर होता जाएगा। क्यों•ि आत्मबल •े सामने बाहुबल और धन बल हमेशा परास्त हुआ है। यह केवल विचार रही। इतिहास इसका गवाह है। जब भी कोई आंदोलन जन आंदोलन बनता है तो उसे अनेक शल्य किर्रियाओं से गुजरना पड़ता है। यहीं आंदोलन की अग्नि दिव्य प्रकाश पुंज में तब्दील होती है। जो अपने ताप के आगोश सभी को लेती चली जाती है। और बाहुवली अपने हथकंड़ों के घेरे को कसते है। जो उनके अस्त होने का सूचक होता है। गांधी जी के अहिंसक आंदोलन को लेकर अनेक तरह की भ्रांतियां और मतांतर उस दौर में भी था। इस दौर में भी है। लेकिन जीत पवित्र उद्देश्य धारण करने वाले आत्मबल की ही होती है। अन्ना के आंदोलन पर चौतरफा हमले हो रहे हैं। लेकिन हर बार अन्ना हजारे टीम हमलों के बीच से रास्ता निकालकर अपने उद्देश्य को पाने के आगे बढ़ जाती है।

मेरा मानना है कि इस आंदोलन को जितने अधिक हमलों, दबाव का सामना करना पड़ेगा। उतना अधिक आम लोगों का समर्थन मिलता जाएगा। क्योंकि आम लोग तत्काल प्रतिकि्रिया व्यक्त नहीं करते हैं। उन्हें केवल भीड़ और दर्शक मानने वालों को यह समझ आया कि नहीं लेकिन हर बार परिपक्व होते लोकतंत्र ने इशारा किया है। आम आदमी ने किसी को अगर सिंहासन पर बैठाया है तो हाशिए पर ले जाने में भी कोई हिचक नहीं दिखाई है। उसका विश्लेषण भले ही हम कुछ भी करते रहें। परिणाम हमेशा चौंकात ही रहा है।
इसका स्पष्ट उदाहरण अभी हाल में हुए हिसार •के लोकसभा चुनाव के दौरान बना माहौल है। हरियाणा के भिवानी जिले में रहने वाले मेरे एक परिचित की डयूटी हिसार लोकसभा चुनाव में लगी थी। फोन पर उनसे चर्चा में चुनाव को लेकर र चर्चा हुई तो उनका उत्तर बेहद चौकाने वाला था। उनका कहना था कि अन्ना की अपील पर मतदान कक्ष के बाहर खड़े और मतदान करने आने वाले वोटर न सिर्फ कर रहे थे। इससे मतदानकर्मियों में पूरे देश की तरह उत्सुत्कता थी। क्या वास्तव में अन्ना फेक्टर वोट में तब्दील होगा कि नहीं। क्योंकि पहली बार वोटर इस तरह की चर्चा खुले आम कर रहा था। चार- पांच चुनाव में डयूटी देते समय उन्हें ऐसा नजारा नहीं दिखा था। उनकी उत्सुकता शाम होते होते परिणाम को लेकर आश्वस्त होने लगी थी । लेकिन उनका आकलन अपने मतदान केंद्र भर का न हो इसके लिए उन्होंने अपने अन्य साथियों से चर्चा कि तो चौंकानेकी बारी उनकी थी। सभी ने एक ही स्वर में कहा, अन्ना फैक्टर वोट में बदल गया है। यानि सियासत करने वाले माने न माने अन्ना की अपील असर कर गई है। घर आकर दोस्तों और परिचितों को उन्होंने बता दिया था कि देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़ा हुआ आंदोलन न धीमा पड़ा है और न थमा है। बल्कि राख के नीचे दबी चिंगारी की तरह चारों तरफ फैल गया है। अब सब सावधान हो जाएं।
-राजेश रावत भोपाल