Thursday 8 December 2011

२० जनवरी से शुरू होगा जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल

नई दिल्ली Ð जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल 2012 जयपुर के दिग्गी पैलेस में 20 जनवरी से शुरू हो रहा है। 24 जनवरी तक चलने वाले इस उत्कृष्ट साहित्य महोत्सव में राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय लेखकों की पुस्तकें प्रदर्शित की जाएंगी और नए लेखन के अतिरिक्त अरब जगत की जन जागृति, गांधी-टॉल्सटाय- टैगोर तथा अन्ना जैसे विषयों पर चर्चा होगी। शेष त्नपेज ९ पर
साहित्य राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय लेखन , वाद- संवाद , पठन और संगीत के इस महोत्सव में विश्व के 200 से अधिक हस्ताक्षर भाग लेंगे। के इस वार्षिक उत्सव का पार्टनर दैनिक भास्कर समूह है।

पांचवें जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल 2012 में अरविंद कृष्ण मेहरोत्रा, अमिष त्रिपाठी, बेन ओकरी, डेविड हरे, डेविड रेमनिक, दीपक चोपड़ा , फातिमा भुट्टो , गुलजार , हरि कुंजरु , हेलेन फिल्डिंग ,जमैका किन कैड, जेम्स शैपिरो , जैसन बर्क , जावेद अख्तर , लक्ष्मी शर्मा, महेश दातानी, माइकल ऑन्डाची, मो. हनीफ,पवन वर्मा , पीयूष दैया , प्रसून जोशी, पुरुषोत्तम अग्रवाल, राहुल भट्टाचार्य , रवि थापा, रंजीत होसकोते, श्याम जहांगिड़ , सिमॉन सेबाग मोंटेफोर , तहमीमा अनम, थां मिन्त यू , टॉम स्टोपार्ड और जो हेलर जैसी देश-विदेश की प्रसिद्ध हस्तियां भाग लेंगी।
जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल का फोकस भक्ति और सूफी परंपरा, अरब जगत में जन विद्रोह , गांधी-आंबेडकर और अन्ना, सेंसरशिप, विश्व के तनाव वाले हिस्सों की रचना, थियेटर और अन्य अहम मसलों पर रहेगा। फेस्टिवल की सह-निदेशक नमिता गोखले ने कहा कि जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल वास्तव में भारतीय-अंतर्राष्ट्रीय लेखन का कुंभ मेला है। 2012 के फेस्टिवल से साहित्य जगत को नई ऊर्जा हासिल होगी।
फेस्टिवल के दूसरे सह निदेशक विलियम डैलरैम्पस ने बताया कि इस उत्सव में हम टॉलस्टाय, टैगोर और गांधी के आकर्षक संबंधों की भी विवेचना करेंगे। फेस्टिवल में भाग लेने के लिए पर रजिस्ट्रेशन कराया जा सकता है।

भोपाल में होता है हर दिन जल युद्ध

-राजेश रावत भोपाल
8 दिसंबर 2011
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दुनिया भर में बार बार भविष्यवाणी की जा रही है कि जल युद्ध होगा। जल यानि पानी बचाने के लिए आंदोलन चलाया जाना चाहिए। सरकारें भी पानी बचाने का नारा देकर थक चुकी हैं। लेकिन न तो वे पानी की बचत के लिए आम आदमी को प्रोत्साहित कर पाई है और न ही खुद एेसे प्रावधान कर पाई कि पानी की बचत की दिशा में सार्थक पहल माना जाए। जैसे सौ साल पहले पानी बहता था वैसे ही अविरल बह रहा है। जैसे हम पानी की बहुलता के समय उसकी बर्बादी करते थे आज भी वैसे ही कर रहे हैं।

पानी की कमी का अहसास भोपाल में आकर हुआ। मध्यप्रदेश की राजधानी के विषय में दुनिया भर में किवदंती प्रचलित है कि तालों में ताल भोपाल ताल बाकी सब तलैया। यह भी सही है कि जिस तरह राजस्थान के उदयपुर शहर को झीलों की नगरी माना जाता है। उसी तरह भोपाल को तालाबों का शहर माना जाता है।

फिर भी यहां के लोगों को पानी की कमी का दंश झेलना पड़ता है। यह भी रौचक तथ्य है। इसका सीझा और सपाट उत्तर यह है कि तालाबों की बहुलता के चलते यहां के लोगों ने पानी की महत्ता को उस तरह से नहीं समझा जिस तरह से राजस्थान के लोगों ने समझा और सहेजने के उपाय भी इजाद किए।

एेसा नहीं है कि यहां के लोगों ने योजना नहीं बनाई। जनसंख्या के बढ़ते दबाव को महसूस कर समय -समय पर मंथन तो किया। लेकिन अमली जामा पहनाने में पिछड गए। क्योंकि उस दौर में पानी की कमी नहीं थी और न ही हाहाकार मच रहा था कि उस पर गंभीरता से सोचने को मजबूर हों। भोपाल की जीवन रेखा बड़ा तालाब है। इससे लगा छोटा तालाब भी है। बड़े तालाब के निमार्ण का काल 11 वी सदी माना जाता है।

इस तालाब से करीब तीस मिलियन गैलन पानी (करीब 11.36 करोड लीटर)रोज भोपाल को देता है। यह तालाब यहां के चालीस प्रतिशत लोगों की प्यास बुझाता है। इस झील का क्षेत्रफल 31 वर्ग किलोमीटर है। 361 वर्ग मिमी इलाके में पानी एकत्र किया जाता है। इससे भोपाल के 87 गांव और सीहोर के कुछ गांवों के किसान सिंचाई भी करते हैं।

अब सवाल यह है कि जिस शहर की 18 लाख की आबादी होने जा रहा है। वहां पानी की किल्लत तो होना ही लाजिमी है। पर यहां के प्रशासकों का आकंलन सटीक था तो उसके निराकरण के प्रयास में वे विफल क्यों हुए इन कारणों को खोजा जाना चाहिए।

भोपाल का विस्तार लगातार होता जा रहा है। इस विस्तार के हिसाब से क्या पानी की खपत का आकंलन करके योजना बनाई जा रही है और बन रही है तो उसके किरय़ान्वयन के लिए जो प्रभावी तंत्र का गठन होना चाहिए वह हुआ है और उसकी निगरानी का क्या प्रावधान है।

इसे सबके सामने रखना होगा। इसमें जितना सरकारी तंत्र का रोल है उतना ही आम जन की भागीदारी होने से इस समस्या को सुलझाया जा सकेगा। न तो कभी अकेले सरकारों ने कोई काम किया है और न ही कर पाएगी। क्योंकि आम जन की भागीदारी के बगैर इस समस्या का हल नहीं निकाला जा सकता है।

Sunday 20 November 2011

जितने हमले होंगे उतना आंदोलन बढेगा

राष्ट्र पिता महात्मा गांधी ट्रेन से उतारे जाने के बाद अगर हिंसा का शिकार नहीं होते तो शायद भारत आजाद नहीं होता और न ही लोकतंत्र की नीव पड़ती। इसलिए टीम अन्ना जितना हिंसा के निशाने पर रहेगी। लोगों के भीतर पनप रहा असंतोष उतना ही मुखर होता जाएगा। क्यों•ि आत्मबल •े सामने बाहुबल और धन बल हमेशा परास्त हुआ है। यह केवल विचार रही। इतिहास इसका गवाह है। जब भी कोई आंदोलन जन आंदोलन बनता है तो उसे अनेक शल्य किर्रियाओं से गुजरना पड़ता है। यहीं आंदोलन की अग्नि दिव्य प्रकाश पुंज में तब्दील होती है। जो अपने ताप के आगोश सभी को लेती चली जाती है। और बाहुवली अपने हथकंड़ों के घेरे को कसते है। जो उनके अस्त होने का सूचक होता है। गांधी जी के अहिंसक आंदोलन को लेकर अनेक तरह की भ्रांतियां और मतांतर उस दौर में भी था। इस दौर में भी है। लेकिन जीत पवित्र उद्देश्य धारण करने वाले आत्मबल की ही होती है। अन्ना के आंदोलन पर चौतरफा हमले हो रहे हैं। लेकिन हर बार अन्ना हजारे टीम हमलों के बीच से रास्ता निकालकर अपने उद्देश्य को पाने के आगे बढ़ जाती है।

मेरा मानना है कि इस आंदोलन को जितने अधिक हमलों, दबाव का सामना करना पड़ेगा। उतना अधिक आम लोगों का समर्थन मिलता जाएगा। क्योंकि आम लोग तत्काल प्रतिकि्रिया व्यक्त नहीं करते हैं। उन्हें केवल भीड़ और दर्शक मानने वालों को यह समझ आया कि नहीं लेकिन हर बार परिपक्व होते लोकतंत्र ने इशारा किया है। आम आदमी ने किसी को अगर सिंहासन पर बैठाया है तो हाशिए पर ले जाने में भी कोई हिचक नहीं दिखाई है। उसका विश्लेषण भले ही हम कुछ भी करते रहें। परिणाम हमेशा चौंकात ही रहा है।
इसका स्पष्ट उदाहरण अभी हाल में हुए हिसार •के लोकसभा चुनाव के दौरान बना माहौल है। हरियाणा के भिवानी जिले में रहने वाले मेरे एक परिचित की डयूटी हिसार लोकसभा चुनाव में लगी थी। फोन पर उनसे चर्चा में चुनाव को लेकर र चर्चा हुई तो उनका उत्तर बेहद चौकाने वाला था। उनका कहना था कि अन्ना की अपील पर मतदान कक्ष के बाहर खड़े और मतदान करने आने वाले वोटर न सिर्फ कर रहे थे। इससे मतदानकर्मियों में पूरे देश की तरह उत्सुत्कता थी। क्या वास्तव में अन्ना फेक्टर वोट में तब्दील होगा कि नहीं। क्योंकि पहली बार वोटर इस तरह की चर्चा खुले आम कर रहा था। चार- पांच चुनाव में डयूटी देते समय उन्हें ऐसा नजारा नहीं दिखा था। उनकी उत्सुकता शाम होते होते परिणाम को लेकर आश्वस्त होने लगी थी । लेकिन उनका आकलन अपने मतदान केंद्र भर का न हो इसके लिए उन्होंने अपने अन्य साथियों से चर्चा कि तो चौंकानेकी बारी उनकी थी। सभी ने एक ही स्वर में कहा, अन्ना फैक्टर वोट में बदल गया है। यानि सियासत करने वाले माने न माने अन्ना की अपील असर कर गई है। घर आकर दोस्तों और परिचितों को उन्होंने बता दिया था कि देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़ा हुआ आंदोलन न धीमा पड़ा है और न थमा है। बल्कि राख के नीचे दबी चिंगारी की तरह चारों तरफ फैल गया है। अब सब सावधान हो जाएं।
-राजेश रावत भोपाल

Sunday 18 September 2011

रफ़ी साहब की मख़मली आवाज़ में एक अविस्मरणीय गुजराती ग़ज़ल


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साभार ब्लॉग सुखनसाज

अख़्तरीबाई फ़ैज़ाबादी यानी बेगम अख़्तर की ये गुजराती ग़ज़ल.

में तजी तारी तमन्ना तेनो आ अंजाम छे
के हवे साचेज लागे छे के तारू काम छे
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साभार : • ब्लॉग सुखनसाज
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Saturday 17 September 2011

ट्रेसी चैपमैन 4 - एट दिस पौइंट इन माई लाइफ


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shabar- kabadkhanna

ट्रेसी चैपमैन 5 - द प्रॉमिस


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shabar kabadkhaana

ट्रेसी चैपमैन 3 - ओवर इन लव


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ट्रेसी चैपमैन 2 - आई एम यूअर्स


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ट्रेसी चैपमैन 1 - द ब्रिजेज़ वी बर्न कम बैक वन डे टू हौंट यू


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ट्रेसी चैपमैन


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शानदार आवाज़ में एक प्रेमगीत 'द प्रॉमिस'.

Wednesday 14 September 2011

इंशा जी के दो कबित (कबित्त)


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sabhar kabadkhaana

एक्सक्यूज़ मी फ़ॉर नॉट डाइंग


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लेनर्ड कोहेन की लन्दन कन्सर्ट से कुछ हिस्से
sabhar.khabadkhaana

Tuesday 13 September 2011

प्रस्तुत है आबिदा परवीन का गाया यह मधुर गीत

http://www.facebook.com/pages/Esnips/157184544327889

गायक बीरा आशिक़ (आशिक़ अली खाँ पेशावर वाले)

नमूने के बतौर क्रमशः राग बहार, कामोद और यमन में ख़याल की बंदिशें पेश हैं. sabhar.kabadkhaana
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न किसी का आंख का नूर हूं


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sabhar kabadkhaana

किसी आंख को सदा दो किसी ज़ुल्फ़ को पुकारो

पटियाला घराने के मशहूर गायक उस्ताद हामिद अली ख़ान साहब की यह ग़ज़ल. sabhar.kabadkhaana
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सैक्सोफ़ोन पर शास्त्रीय जुगलबन्दी

यान गारबारेक नॉर्वेजियाई मूल के संगीतकार हैं. यान गारबारेक ने १९९२ में उस्ताद बड़े फ़तेह अली ख़ां साहब के साथ एक अल्बम तैयार किया था Ragas and Sagasप्रस्तुत है
-sabahar.kabadkhaana
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पं.कुमार गंधर्व का गाया राग मालकौंस -sabhar kabaadkhanana

बहुत विख्यात गीत 'माटील्डा'. पूरा सुनिएगा!

You don't bring me flowers anymore


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नील डायमंड मेरे चहेते गायकों में एक हैं। दुनिया के सबसे सफल गायकों में गिने जाने वाले नील के रेकॉर्ड्स बिक्री के मामले में सिर्फ़ एल्टन जॉन और बारबरा स्ट्राइसेन्ड से पीछे हैं। १९६० के दशक से लेकर १९९० के दशक तक एक से एक हिट गाने देने वाले नील इस गीत में बारबरा स्ट्राइसेन्ड का साथ दे रहे हैं। बारबरा स्ट्राइसेन्ड एक बेहद संवेदनशील अभिनेत्री के तौर पर भी जानी जाती रही हैं। एलेन और मर्लिन बर्गमेन के साथ नील के लिखे इस गीत के बोल ये रहे:

Saturday 10 September 2011

ऐ इश्क हम तो अब तेरे क़ाबिल नहीं रहे

आबिदा _sabhar kabaadkhana
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२००६ में आशा भोंसले ने यूनीवर्सल रेकॉर्डस से 'कहत कबीर' संग्रह जारी किया था. आशा भोंसले की आवाज़ में कबीर को सुनना बहुत सुखद अनुभव था. इस संग्रह से आपको सुनवाता हूं अपना पसंदीदा पीस. वैसे तो यह रचना आज से दो साल से अधिक समय पहले कबाड़ख़ाने पर लगाई जा चुकी है पर अब उसके प्लेयर ने काम करना बन्द कर दिया है. आनन्द लीजिए -sabhar-kabaadkhana

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फ़ैज़ साहब की इस नज़्म के इक़बाल बानो द्वारा गाये जाने के पीछे यह विख्यात है कि ख़ुद फ़ैज़ साहब इसे उनकी आवाज़ में सुनकर रो दिये थे.प्रस्तुत है यह अलौकिक, एक्सक्लूसिव रचना:sabhar·kabadkhana

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एक आदिम कराह! दर्द की! यह ईसा को सूली पर चढ़ाए जाते समय के दृश्य का संगीत है फ़िल्म 'द लास्ट टैम्प्टेशन ऑफ़ क्राइस्ट' से:

Tuesday 30 August 2011

मैं रहूं न रहूं

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मैं रहूं न रहूं ये मशाल जलती रहें
भ्रष्टाचारियों को कानून से तलते रहें

जनलोकपाल का बिल है सख्त
भ्रष्टों को इससे मसलते रहे

इमान की राह में दुश्वारियां हैं अनंत
बिना डिगे ही इस राह पर चलते रहें

खुद भी दलदल से बचते रहें
राह चलते लोगों को बचाते रहें
-राजेश रावत,भोपाल
29 अगस्त 2011

Sunday 28 August 2011

चिडिय़ा

पहली बारिश में फुदकती चिडिय़ा
तिनके -तिनके जोड़ती चिडिय़ा

तूफां में उड़ते घोसलें का
जश्न मनाती चिडिय़ा

फोन की बजती घंटी
बूंदों की खनक

उसको भी अहसास होगा
मौसम की पहली बारिश का

बारिश में भीगना दोनों को
अच्छा लगता है
-राजेश रावत,भोपाल
28अगस्त 2011

पानी


रिमझिम बरसता पानी
हिचकोले खाती कश्ती
खुशी ओ गम में बसती आंखे

-राजेश रावत,भोपाल
28अगस्त 2011

सपने है बाकी

अभी आंखों में तनाव है बाकी
मुसकुराहट से जुड़ाव है बाकी

चलते चलते रुक जाता हूं
कदमों का उठ जाना है बाकी

अधूरी तस्वीर में रंग है बाकी
सपने हकीकत बनना है बाकी

-राजेश रावत,भोपाल
28अगस्त 2011

जीत

हुई लोकतंत्र की जीत
देश भर में मनी दीवाली
अन्ना के अनशन ने
सत्ता की मुश्कें हुई ढीली

-राजेश रावत,भोपाल
28अगस्त 2011

Saturday 27 August 2011

क्या नेताओं के इस चरित्र पर भरोसा करें हम


देश में अहिंसा और शिष्टाचार की दुहाई लोकसभा में कांग्रेस के नेताओं से लेकर सभी नेताओं ने की। लालू यादव ने तो अपनी चिरपरिचित शैली में सभी सांसदों से एकजुट होने की गुहार लगाई। टीम अन्ना के खिलाफ विषवमन किया।

सांसदों ने संविधान की दुहाई देकर जनलोकपाल बिल को स्टैंडिंग कमेटी में भेजने का समर्थन किया और सभी सांसदों ने तालियां बजाकर उनकी हौसला अफजाई की। हम अहिंसा और सांसदों की तकलीफ समझ सकते हैं। उन्हें जो अधिकार मिला है। वह छिनता देख उनकी पीड़ा उनके भाषणों और आचरण में स्पष्ट झलक हो रही है।

उन पर भरोसा करके ही देश के 125 करोड़ लोगों ने उन्हें चुन कर भेजा था। लेकिन क्या वे देश के लोगों के भरोसे पर खरे उतर रहे हैं। क्या उनके किए गए कामों से जनता को राहत मिल रही है। यह माननीय सांसदों को विचार करना चाहिए। आज अन्ना और उनकी टीम को देश का समर्थन मिल रहा है। इसका सीधा मतलब है कि देश की जनता चाहती है। कि सांसद और विधायक भ्रष्टाचार के मुद्दे पर अपना नजरिया बदलें और सख्त कानून बनाकर देश में भ्रष्टाचार के दानव को समाप्त करने के लिए खुले मन से कानून बनाए।

लेकिन सत्ता और ताकत में मद में सांसद और विधायक इस विषय पर अपने चश्मे को बदलना ही नहीं चाह रहे हैं। उनको पता है कि जनता क्या चाहती है। लेकिन अपने हाथ से सत्ता जाने के डर से वे जनलोकपाल बिल का विरोध संसद में करके लोकतंत्र का अपमान कर रहे हैं। लोकतंत्र के अपमान का नजारा लोगों ने लाइव देखा और समझ रहे हैं कि नेता क्या कह रहे हैं और क्या चाहते हैं।
भ्रष्टाचार और नेताओं के मनमाने तरीकों से परेशान लोग अन्ना के साथ खड़े हो गए है। इसका साफ मतलब है कि अब राजनेता जनता को गुमराह नहीं कर सकते हैं।

नेताओं को सोचना होगा कि अब करनी और कथनी में अंतर नहीं चलेगा। देश और संविधान की दुहाई देने वाले नेताओं का चरित्र का एक उदाहरण आपके सामने रखना चाहता हूं और सांसदों विधायकों से पूछना चाहता हूं कि वे बताएं कि इसे देश की जनता क्या समझे।

उदाहरण : राजीव गांधी की हत्या के दोषियों को फांसी की सजा मिलने के बाद उसे आजीवन कैद में बदलवाने के लिए केरल में विपक्ष के कृत्य को क्या समझा जाए।

उदाहरण : 1991 में एससएपी सुमेध सिंह सैनी और 1993 में युवक कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष मनिदरजीत सिंह बिट्टा पर हमला करने वाले प्रो दविंदरपाल सिंह भुल्लर को फांसी की सजा को उमर कैद में बदलने की मांग पंजाब के सारे दलों के नेता कर रहे हैं। उनके इस कृत्य को क्या समझा जाए।

-सवाल क्या एक बार कानून से सजा मिलने के बाद उसे बदल जाना संविधान की अवहेलना नहीं है। जबकि राष्ट्रपति दया माफी याचिका को ठुकरा चुके हैं।

-अगर ऐसा है तो देश में अब तक जितने लोगों को भी फांसी की सजा हुई है। सभी को माफ नहीं किया जाना उनके साथ अन्याय नहीं है।

-क्या ताकतवर समुदाय के लोगों को अपराध की सजा उनके समुदाय की ताकत और संख्या के हिसाब से मिलेगी।

-इसे दोहरा चरित्र नहीं माना जाए तो क्या माना जाए।

-राजेश रावत,भोपाल
27अगस्त 2011

Tuesday 23 August 2011

चली अन्ना की रेल . . . .

जन लोकपाल की चली रेल
मन की कूटनीति हो गई फेल

देश में नहीं अन्ना का मेल
नेताओं का हुआ खत्म खेल

इरादों के आगे बौना हुआ जेल
तिहाड़ के आगे मची थी रेलमपेल

रामलीला में लगी थी सेल
जहां थी विचारों की भेल

नेताओं को जनता रही ठेल
पुलिस पिला रही डंडों को तेल

किरण को तंत्र रहा था झेल
केजरीवाल ने पकड़ी मन की टेल

परेशान मन पहुंचे अन्ना के दल
दुनिया ने देखा भारत का बल

राजेश रावत, भोपाल
23 अगस्त 2011

Thursday 4 August 2011

लड़े कि प्यार करें



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तु मेरे सामने , मैं तेरे सामने
अब तु ही बता, लड़े की प्यार करें
नजरों में गुस्सा, दिल में प्यार
बेदर्दी तुझसे लड़े कि प्यार करें
सपनों में आती, नींद उड़ा ले जाती
बैचेन आशिक तुझसे लड़े कि प्यार करे
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राजेश रावत ,भोपाल
3 अगस्त 2001

Wednesday 3 August 2011

तीन पत्ती का खेल

तीन पत्ती का देखा खेल
चलती ट्रेन में खूनी खेल

डिब्बे में शुरू हो गया जुएं का खेल
पुराने शौकिन सैनिकों का हो रहा था खेल

हारने वाला जीतने खेलता खेल
जीतने वाला भी जोश में आता देख खेल

दोनों मिलकर खेलते खेल
एक को हारना निश्चित है खेल

ऐसा रोग है यह खेल
एक धुन का होता है यह खेल

न भीम बचे न ही अर्जुन
अपने ही अभिमान हारे युधिष्ठिर खेल

उनका सुख-चैन कम करता गया खेल
दुर्योधन की कुबुद्धि जीत गया खेल

पंचाली के आरमानों के ले गया खेल
श्रीकृष्ण ने भी खेला था अपना खेल

सौ कौरवों को लील गया था खेल
पांडवों का भी सब कुछ लील गया था खेल
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राजेश रावत भोपाल
4 अगस्त 2011

योगी बाबा बनाम कसरती बाबा

मुझे याद है स्कूल के दिनों में पीटी का एक पीरियड लगता था। जिसमें सभी को हल्की -फुल्की कसरत कराई जाती थी। उसके बाद मोहल्ले में एक योग शिविर लगा था। जिसमें भी उसी तरह की और उससे थोड़ी कठिन कसरत कराई जाती थी। एक सप्ताह में मोहल्ले के सभी लोग सुबह साढ़े पांच बजे जागकर योग शिविर में अपनी अपनी दरी या चटाई लेकर पहुंच जाते थे। मां-बाप बच्चों को लेकर आते थे। ताकि वे भी योग करके तंदरुस्त बन सकें।

मोहल्ले के एक शिविर में दस साल के बच्चे से लेकर साठ -सत्तर साल के दादाजी तक भाग लेते थे। पूरा मोहल्ला योगमय हो गया था। अल सुबह से योग का जो सिलसिला शुरू होता तो सोने तक उसकी चर्चा घरों में किसी न किसी रूप में चलती रहती थी। अगले दिन योग शिविर में योग करने से हुए फायदे का आदान-प्रदान पूरे मोहल्ले के लोगों को बीच करना शगल बन गया था।

एक सप्ताह के बाद कुछ लोग पार्क में आकर योग करते थे और अपने शरीर पर इसके चमत्कारी प्रभाव की जानकारी अन्य लोगों को देते थे। जो नियमित तौर पर नहीं कर पाते थे वे अंदर ही अंदर इस बात से कुपित होते थे। लेकिन अपने आलस्य के आगे विवश हो जाते थे। सालों से योग को जानने वाले मेरे ज्ञान को बाबा रामदेव नाम के एक शख्स ने न सिर्फ बढ़ाया था बल्कि योग के प्रति आस्था भी जगा दी थी। पूरे देश के साथ ही मैं भी बाबा रामदेव के योग आसानों का मुरीद हो गया था।

लेकिन बाबा रामदेव ने विदेश में जमा काले धन को देश में लाने के नाम पर अनशन शुरू किया और करीब पांच दिनों उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया । इस खबर ने मुझे देश के करोड़ों लोगों की तरह हिला दिया था। इसलिए नहीं कि बाबा अस्पताल में गए। बल्कि इसलिए कि योग के महारथी का शरीर पांच दिन भी निर्जला नहीं रह सका। जबकि मेरी मां या पत्नी तो एक साथ नौ दिनों तक नवरात्र के व्रत करती हैं और उन्हें कभी भी अस्पताल में भर्ती नहीं कराना पड़ता है। यह अलग बात है कि वे पानी या दूध ले लेती हैं। इसी तरह के देश के अनेक लोग नवरात्र में कुछ न कुछ लेकर व्रत करते हैं और बीमार भी नहीं होते हैं।

बाबा रामदेव योग महारथी हैं तो उनका शरीर इतना कमजोर तो नहीं होना चाहिए कि पांच दिन की भूख भी सहन न कर सके। टीवी पर उनका चेहरा और अस्पताल में लचर अवस्था की तस्वीरे देखने के बाद करोड़़ों भारतीयों के मन में एक सवाल आने लगा कि क्या बाबा को योग में महारत हासिल थी या केवल कसरत को वे योग का आवरण पहनाकर भुना रहे थे।

हैल्थ क्लब के संचालक की तरह योग के नाम का इस्तेमाल करके शरीरिक व्याधियों को दूर किया और अपने उत्पाद को बेचने वाले व्यापारी की तरह मुनाफा कमाकर करोड़ों के आसामी बन गए। मुझे उनके करोड़पति बनने से कोई आपत्ति नहीं है। मेरी नाराजगी इस बात से है कि बाबा रामदेव ने कसरत को योग का नाम दिया योग को बदनाम किया। बाबा ने मेरी योग के प्रति आस्था को दोहन करके धोखा दिया है। उनका भांडा अब फूट गया है।

कसरत करें या कराएं इससे मुझे को आपत्ति नहीं है। क्योंकि योग में धैर्य को धारण करने की शक्ति का विकास किया जाता है। बाबा केंद्र सरकार से अपनी बात मनवाने के लिए धैर्य नहीं रख सके और जल्दी ही अपने आंदोलन और अपने नाम को लोकप्रिय बनाने के लालच के कारण सरकार के कोप का भाजन बन गए। योग में हठ योग को एक शाखा के रूप में देखा जा सकता है।

लेकिन हठ योग को बीमारी या व्याधि को दूर करने के लिए किया जाता है तो उत्तम होता है। बाबा ने धैर्य के स्थान पर हठ को अस्त्र बनाने का प्रयास किया और विफल हो गए। पहले उन्हें मेरा समर्थन बिना किसी हिचकिचाहट के मिलता था। अब उनसे मुझे सहानुभूति तक नहीं है। क्योंकि उन्होंने मेरे भरोसे को छला है। इसलिए सभी को योग के नाम पर होने वाले किसी भी शिविर से जुडऩे से पहले पूरी पड़ताल करनी होगी। ताकि कसरत वाले बाबा केवल कसरत ही करवाएं योग नहीं । जिससे उनका दूर का भी वास्ता नहीं होता है।

राजेश रावत, भोपाल

Saturday 25 June 2011

आधा और पाव शेर ...

चल पडी है बहस  सिंह और शेर कौन हुआ.
लायन होता है जंगल का राजा.
फिर शेर किसे कहा जायगा.
कही सवा शेर भी ढूंडा जायगा.
पहले पाव शेर भी था चलन में.
आधुनिक होते मनुष्य ने.
पाव और आधा शेर भुला दिए.  

-राजेश रावत
भोपाल (म.प्र )

Sunday 19 June 2011

पेड़ खजूर
लंबा ही नहीं
छोटा भी होता भी होता है पेड़ खजूर
छाया न दें, पर
फल देता है पेड़ खजूर
कड़वे ,खट्टे छोड़ दें
मीठे -मीठे फल देता है पेड़ खजूर
रंग बदलती दुनिया में
हरे, पीले, क ई रंग बदलता है पेड़ खजूर
मतलब की   दुनिया में
बेमतलब खड़ा रहता है पेड़ खजूर
तीखी धूप में
भूख मिटाता पेड़ खजूर
जंगल में मंगल का  उत्सव
मनाने का  अवसर देता पेड़ खजूर
चुभते का टों के  बीच
सख्त दरख्तों के  संग मौज मनाता पेड़ खजूर
भटकते राही के  मन में
आस जगाता पेड़ खजूर
-राजेश रावत
भोपाल मध्यप्रदेश
11 जून 2011 शनिवार

Thursday 2 June 2011

गंध

गंध
पसीने की बूंदों में
मजदूरों की  मंसूबों में
किसानों के हल से
कारखाने की  दीवारों से
आती है गंध
-राजेश रावत 'अक्षय '
भोपाल मध्यप्रदेश
09074690400

Tuesday 31 May 2011

चाहिए

हो गई दर्द की इंतहा, मोहब्बत का मरहम चाहिए

दिखे न दिखे महबूब, खुदा का चेहरा दिखना चाहिए


-राजेश रावत,  अक्षय

उज्जैन 

हो गई है पीर पर्वत

 

रचनाकार: दुष्यंत कुमार 



हो गई है पीर पर्वत-



सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए

आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी
शर्त थी लेकिन कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए

हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए

सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए