Saturday 10 September 2011


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फ़ैज़ साहब की इस नज़्म के इक़बाल बानो द्वारा गाये जाने के पीछे यह विख्यात है कि ख़ुद फ़ैज़ साहब इसे उनकी आवाज़ में सुनकर रो दिये थे.प्रस्तुत है यह अलौकिक, एक्सक्लूसिव रचना:sabhar·kabadkhana

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