Tuesday 31 May 2011

चाहिए

हो गई दर्द की इंतहा, मोहब्बत का मरहम चाहिए

दिखे न दिखे महबूब, खुदा का चेहरा दिखना चाहिए


-राजेश रावत,  अक्षय

उज्जैन 

हो गई है पीर पर्वत

 

रचनाकार: दुष्यंत कुमार 



हो गई है पीर पर्वत-



सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए

आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी
शर्त थी लेकिन कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए

हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए

सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए