Tuesday 30 August 2011

मैं रहूं न रहूं

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मैं रहूं न रहूं ये मशाल जलती रहें
भ्रष्टाचारियों को कानून से तलते रहें

जनलोकपाल का बिल है सख्त
भ्रष्टों को इससे मसलते रहे

इमान की राह में दुश्वारियां हैं अनंत
बिना डिगे ही इस राह पर चलते रहें

खुद भी दलदल से बचते रहें
राह चलते लोगों को बचाते रहें
-राजेश रावत,भोपाल
29 अगस्त 2011

Sunday 28 August 2011

चिडिय़ा

पहली बारिश में फुदकती चिडिय़ा
तिनके -तिनके जोड़ती चिडिय़ा

तूफां में उड़ते घोसलें का
जश्न मनाती चिडिय़ा

फोन की बजती घंटी
बूंदों की खनक

उसको भी अहसास होगा
मौसम की पहली बारिश का

बारिश में भीगना दोनों को
अच्छा लगता है
-राजेश रावत,भोपाल
28अगस्त 2011

पानी


रिमझिम बरसता पानी
हिचकोले खाती कश्ती
खुशी ओ गम में बसती आंखे

-राजेश रावत,भोपाल
28अगस्त 2011

सपने है बाकी

अभी आंखों में तनाव है बाकी
मुसकुराहट से जुड़ाव है बाकी

चलते चलते रुक जाता हूं
कदमों का उठ जाना है बाकी

अधूरी तस्वीर में रंग है बाकी
सपने हकीकत बनना है बाकी

-राजेश रावत,भोपाल
28अगस्त 2011

जीत

हुई लोकतंत्र की जीत
देश भर में मनी दीवाली
अन्ना के अनशन ने
सत्ता की मुश्कें हुई ढीली

-राजेश रावत,भोपाल
28अगस्त 2011

Saturday 27 August 2011

क्या नेताओं के इस चरित्र पर भरोसा करें हम


देश में अहिंसा और शिष्टाचार की दुहाई लोकसभा में कांग्रेस के नेताओं से लेकर सभी नेताओं ने की। लालू यादव ने तो अपनी चिरपरिचित शैली में सभी सांसदों से एकजुट होने की गुहार लगाई। टीम अन्ना के खिलाफ विषवमन किया।

सांसदों ने संविधान की दुहाई देकर जनलोकपाल बिल को स्टैंडिंग कमेटी में भेजने का समर्थन किया और सभी सांसदों ने तालियां बजाकर उनकी हौसला अफजाई की। हम अहिंसा और सांसदों की तकलीफ समझ सकते हैं। उन्हें जो अधिकार मिला है। वह छिनता देख उनकी पीड़ा उनके भाषणों और आचरण में स्पष्ट झलक हो रही है।

उन पर भरोसा करके ही देश के 125 करोड़ लोगों ने उन्हें चुन कर भेजा था। लेकिन क्या वे देश के लोगों के भरोसे पर खरे उतर रहे हैं। क्या उनके किए गए कामों से जनता को राहत मिल रही है। यह माननीय सांसदों को विचार करना चाहिए। आज अन्ना और उनकी टीम को देश का समर्थन मिल रहा है। इसका सीधा मतलब है कि देश की जनता चाहती है। कि सांसद और विधायक भ्रष्टाचार के मुद्दे पर अपना नजरिया बदलें और सख्त कानून बनाकर देश में भ्रष्टाचार के दानव को समाप्त करने के लिए खुले मन से कानून बनाए।

लेकिन सत्ता और ताकत में मद में सांसद और विधायक इस विषय पर अपने चश्मे को बदलना ही नहीं चाह रहे हैं। उनको पता है कि जनता क्या चाहती है। लेकिन अपने हाथ से सत्ता जाने के डर से वे जनलोकपाल बिल का विरोध संसद में करके लोकतंत्र का अपमान कर रहे हैं। लोकतंत्र के अपमान का नजारा लोगों ने लाइव देखा और समझ रहे हैं कि नेता क्या कह रहे हैं और क्या चाहते हैं।
भ्रष्टाचार और नेताओं के मनमाने तरीकों से परेशान लोग अन्ना के साथ खड़े हो गए है। इसका साफ मतलब है कि अब राजनेता जनता को गुमराह नहीं कर सकते हैं।

नेताओं को सोचना होगा कि अब करनी और कथनी में अंतर नहीं चलेगा। देश और संविधान की दुहाई देने वाले नेताओं का चरित्र का एक उदाहरण आपके सामने रखना चाहता हूं और सांसदों विधायकों से पूछना चाहता हूं कि वे बताएं कि इसे देश की जनता क्या समझे।

उदाहरण : राजीव गांधी की हत्या के दोषियों को फांसी की सजा मिलने के बाद उसे आजीवन कैद में बदलवाने के लिए केरल में विपक्ष के कृत्य को क्या समझा जाए।

उदाहरण : 1991 में एससएपी सुमेध सिंह सैनी और 1993 में युवक कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष मनिदरजीत सिंह बिट्टा पर हमला करने वाले प्रो दविंदरपाल सिंह भुल्लर को फांसी की सजा को उमर कैद में बदलने की मांग पंजाब के सारे दलों के नेता कर रहे हैं। उनके इस कृत्य को क्या समझा जाए।

-सवाल क्या एक बार कानून से सजा मिलने के बाद उसे बदल जाना संविधान की अवहेलना नहीं है। जबकि राष्ट्रपति दया माफी याचिका को ठुकरा चुके हैं।

-अगर ऐसा है तो देश में अब तक जितने लोगों को भी फांसी की सजा हुई है। सभी को माफ नहीं किया जाना उनके साथ अन्याय नहीं है।

-क्या ताकतवर समुदाय के लोगों को अपराध की सजा उनके समुदाय की ताकत और संख्या के हिसाब से मिलेगी।

-इसे दोहरा चरित्र नहीं माना जाए तो क्या माना जाए।

-राजेश रावत,भोपाल
27अगस्त 2011

Tuesday 23 August 2011

चली अन्ना की रेल . . . .

जन लोकपाल की चली रेल
मन की कूटनीति हो गई फेल

देश में नहीं अन्ना का मेल
नेताओं का हुआ खत्म खेल

इरादों के आगे बौना हुआ जेल
तिहाड़ के आगे मची थी रेलमपेल

रामलीला में लगी थी सेल
जहां थी विचारों की भेल

नेताओं को जनता रही ठेल
पुलिस पिला रही डंडों को तेल

किरण को तंत्र रहा था झेल
केजरीवाल ने पकड़ी मन की टेल

परेशान मन पहुंचे अन्ना के दल
दुनिया ने देखा भारत का बल

राजेश रावत, भोपाल
23 अगस्त 2011

Thursday 4 August 2011

लड़े कि प्यार करें



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तु मेरे सामने , मैं तेरे सामने
अब तु ही बता, लड़े की प्यार करें
नजरों में गुस्सा, दिल में प्यार
बेदर्दी तुझसे लड़े कि प्यार करें
सपनों में आती, नींद उड़ा ले जाती
बैचेन आशिक तुझसे लड़े कि प्यार करे
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राजेश रावत ,भोपाल
3 अगस्त 2001

Wednesday 3 August 2011

तीन पत्ती का खेल

तीन पत्ती का देखा खेल
चलती ट्रेन में खूनी खेल

डिब्बे में शुरू हो गया जुएं का खेल
पुराने शौकिन सैनिकों का हो रहा था खेल

हारने वाला जीतने खेलता खेल
जीतने वाला भी जोश में आता देख खेल

दोनों मिलकर खेलते खेल
एक को हारना निश्चित है खेल

ऐसा रोग है यह खेल
एक धुन का होता है यह खेल

न भीम बचे न ही अर्जुन
अपने ही अभिमान हारे युधिष्ठिर खेल

उनका सुख-चैन कम करता गया खेल
दुर्योधन की कुबुद्धि जीत गया खेल

पंचाली के आरमानों के ले गया खेल
श्रीकृष्ण ने भी खेला था अपना खेल

सौ कौरवों को लील गया था खेल
पांडवों का भी सब कुछ लील गया था खेल
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राजेश रावत भोपाल
4 अगस्त 2011

योगी बाबा बनाम कसरती बाबा

मुझे याद है स्कूल के दिनों में पीटी का एक पीरियड लगता था। जिसमें सभी को हल्की -फुल्की कसरत कराई जाती थी। उसके बाद मोहल्ले में एक योग शिविर लगा था। जिसमें भी उसी तरह की और उससे थोड़ी कठिन कसरत कराई जाती थी। एक सप्ताह में मोहल्ले के सभी लोग सुबह साढ़े पांच बजे जागकर योग शिविर में अपनी अपनी दरी या चटाई लेकर पहुंच जाते थे। मां-बाप बच्चों को लेकर आते थे। ताकि वे भी योग करके तंदरुस्त बन सकें।

मोहल्ले के एक शिविर में दस साल के बच्चे से लेकर साठ -सत्तर साल के दादाजी तक भाग लेते थे। पूरा मोहल्ला योगमय हो गया था। अल सुबह से योग का जो सिलसिला शुरू होता तो सोने तक उसकी चर्चा घरों में किसी न किसी रूप में चलती रहती थी। अगले दिन योग शिविर में योग करने से हुए फायदे का आदान-प्रदान पूरे मोहल्ले के लोगों को बीच करना शगल बन गया था।

एक सप्ताह के बाद कुछ लोग पार्क में आकर योग करते थे और अपने शरीर पर इसके चमत्कारी प्रभाव की जानकारी अन्य लोगों को देते थे। जो नियमित तौर पर नहीं कर पाते थे वे अंदर ही अंदर इस बात से कुपित होते थे। लेकिन अपने आलस्य के आगे विवश हो जाते थे। सालों से योग को जानने वाले मेरे ज्ञान को बाबा रामदेव नाम के एक शख्स ने न सिर्फ बढ़ाया था बल्कि योग के प्रति आस्था भी जगा दी थी। पूरे देश के साथ ही मैं भी बाबा रामदेव के योग आसानों का मुरीद हो गया था।

लेकिन बाबा रामदेव ने विदेश में जमा काले धन को देश में लाने के नाम पर अनशन शुरू किया और करीब पांच दिनों उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया । इस खबर ने मुझे देश के करोड़ों लोगों की तरह हिला दिया था। इसलिए नहीं कि बाबा अस्पताल में गए। बल्कि इसलिए कि योग के महारथी का शरीर पांच दिन भी निर्जला नहीं रह सका। जबकि मेरी मां या पत्नी तो एक साथ नौ दिनों तक नवरात्र के व्रत करती हैं और उन्हें कभी भी अस्पताल में भर्ती नहीं कराना पड़ता है। यह अलग बात है कि वे पानी या दूध ले लेती हैं। इसी तरह के देश के अनेक लोग नवरात्र में कुछ न कुछ लेकर व्रत करते हैं और बीमार भी नहीं होते हैं।

बाबा रामदेव योग महारथी हैं तो उनका शरीर इतना कमजोर तो नहीं होना चाहिए कि पांच दिन की भूख भी सहन न कर सके। टीवी पर उनका चेहरा और अस्पताल में लचर अवस्था की तस्वीरे देखने के बाद करोड़़ों भारतीयों के मन में एक सवाल आने लगा कि क्या बाबा को योग में महारत हासिल थी या केवल कसरत को वे योग का आवरण पहनाकर भुना रहे थे।

हैल्थ क्लब के संचालक की तरह योग के नाम का इस्तेमाल करके शरीरिक व्याधियों को दूर किया और अपने उत्पाद को बेचने वाले व्यापारी की तरह मुनाफा कमाकर करोड़ों के आसामी बन गए। मुझे उनके करोड़पति बनने से कोई आपत्ति नहीं है। मेरी नाराजगी इस बात से है कि बाबा रामदेव ने कसरत को योग का नाम दिया योग को बदनाम किया। बाबा ने मेरी योग के प्रति आस्था को दोहन करके धोखा दिया है। उनका भांडा अब फूट गया है।

कसरत करें या कराएं इससे मुझे को आपत्ति नहीं है। क्योंकि योग में धैर्य को धारण करने की शक्ति का विकास किया जाता है। बाबा केंद्र सरकार से अपनी बात मनवाने के लिए धैर्य नहीं रख सके और जल्दी ही अपने आंदोलन और अपने नाम को लोकप्रिय बनाने के लालच के कारण सरकार के कोप का भाजन बन गए। योग में हठ योग को एक शाखा के रूप में देखा जा सकता है।

लेकिन हठ योग को बीमारी या व्याधि को दूर करने के लिए किया जाता है तो उत्तम होता है। बाबा ने धैर्य के स्थान पर हठ को अस्त्र बनाने का प्रयास किया और विफल हो गए। पहले उन्हें मेरा समर्थन बिना किसी हिचकिचाहट के मिलता था। अब उनसे मुझे सहानुभूति तक नहीं है। क्योंकि उन्होंने मेरे भरोसे को छला है। इसलिए सभी को योग के नाम पर होने वाले किसी भी शिविर से जुडऩे से पहले पूरी पड़ताल करनी होगी। ताकि कसरत वाले बाबा केवल कसरत ही करवाएं योग नहीं । जिससे उनका दूर का भी वास्ता नहीं होता है।

राजेश रावत, भोपाल