Thursday 8 December 2011

भोपाल में होता है हर दिन जल युद्ध

-राजेश रावत भोपाल
8 दिसंबर 2011
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दुनिया भर में बार बार भविष्यवाणी की जा रही है कि जल युद्ध होगा। जल यानि पानी बचाने के लिए आंदोलन चलाया जाना चाहिए। सरकारें भी पानी बचाने का नारा देकर थक चुकी हैं। लेकिन न तो वे पानी की बचत के लिए आम आदमी को प्रोत्साहित कर पाई है और न ही खुद एेसे प्रावधान कर पाई कि पानी की बचत की दिशा में सार्थक पहल माना जाए। जैसे सौ साल पहले पानी बहता था वैसे ही अविरल बह रहा है। जैसे हम पानी की बहुलता के समय उसकी बर्बादी करते थे आज भी वैसे ही कर रहे हैं।

पानी की कमी का अहसास भोपाल में आकर हुआ। मध्यप्रदेश की राजधानी के विषय में दुनिया भर में किवदंती प्रचलित है कि तालों में ताल भोपाल ताल बाकी सब तलैया। यह भी सही है कि जिस तरह राजस्थान के उदयपुर शहर को झीलों की नगरी माना जाता है। उसी तरह भोपाल को तालाबों का शहर माना जाता है।

फिर भी यहां के लोगों को पानी की कमी का दंश झेलना पड़ता है। यह भी रौचक तथ्य है। इसका सीझा और सपाट उत्तर यह है कि तालाबों की बहुलता के चलते यहां के लोगों ने पानी की महत्ता को उस तरह से नहीं समझा जिस तरह से राजस्थान के लोगों ने समझा और सहेजने के उपाय भी इजाद किए।

एेसा नहीं है कि यहां के लोगों ने योजना नहीं बनाई। जनसंख्या के बढ़ते दबाव को महसूस कर समय -समय पर मंथन तो किया। लेकिन अमली जामा पहनाने में पिछड गए। क्योंकि उस दौर में पानी की कमी नहीं थी और न ही हाहाकार मच रहा था कि उस पर गंभीरता से सोचने को मजबूर हों। भोपाल की जीवन रेखा बड़ा तालाब है। इससे लगा छोटा तालाब भी है। बड़े तालाब के निमार्ण का काल 11 वी सदी माना जाता है।

इस तालाब से करीब तीस मिलियन गैलन पानी (करीब 11.36 करोड लीटर)रोज भोपाल को देता है। यह तालाब यहां के चालीस प्रतिशत लोगों की प्यास बुझाता है। इस झील का क्षेत्रफल 31 वर्ग किलोमीटर है। 361 वर्ग मिमी इलाके में पानी एकत्र किया जाता है। इससे भोपाल के 87 गांव और सीहोर के कुछ गांवों के किसान सिंचाई भी करते हैं।

अब सवाल यह है कि जिस शहर की 18 लाख की आबादी होने जा रहा है। वहां पानी की किल्लत तो होना ही लाजिमी है। पर यहां के प्रशासकों का आकंलन सटीक था तो उसके निराकरण के प्रयास में वे विफल क्यों हुए इन कारणों को खोजा जाना चाहिए।

भोपाल का विस्तार लगातार होता जा रहा है। इस विस्तार के हिसाब से क्या पानी की खपत का आकंलन करके योजना बनाई जा रही है और बन रही है तो उसके किरय़ान्वयन के लिए जो प्रभावी तंत्र का गठन होना चाहिए वह हुआ है और उसकी निगरानी का क्या प्रावधान है।

इसे सबके सामने रखना होगा। इसमें जितना सरकारी तंत्र का रोल है उतना ही आम जन की भागीदारी होने से इस समस्या को सुलझाया जा सकेगा। न तो कभी अकेले सरकारों ने कोई काम किया है और न ही कर पाएगी। क्योंकि आम जन की भागीदारी के बगैर इस समस्या का हल नहीं निकाला जा सकता है।

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